कहानी |
आपने योग के बारे में पढ़ा या सुना होगा। योग का अर्थ केवल किसी मुद्रा या आसन से नहीं है बल्कि इसका मतलब होता है किन्हीं दो चीजों को आपस में मिलाना या जोड़ना। ऐसी ही एक कहानी है भगवान शिव से जुड़ी हुई। एक बार शिव भगवान योग और सृष्टि की संरचना से जुड़ी बातें सप्तऋषियों को बता रहे थे। इन सप्तऋषियों में से भृगु ऋषि शिव के परम भक्त थे। योग का यह कार्यक्रम कांति सरोवर के किनारे हो रहा था। इस दौरान भगवान शिव के साथ पार्वती भी बैठी हुई थीं। भृगु ऋषि अपने स्थान से उठे और भगवान शिव की परिक्रमा करने लगे। शिव के साथ पार्वती भे बैठीं थीं लेकिन उन्होंने देवी पार्वती को अनदेखा करके केवल भगवान शिव की परिक्रमा की। भृगृ बीच से जगह बनाते हुए शिव की परिक्रमा करने लगे। यह देखकर देवी पार्वती बहुत क्रोधित हुई। भगवान शिव ने देवी पार्वती की मनोदशा भांप ली और उन्हें अपने पास आकर बैठने के लिए कहा। पार्वती जी ने ऐसा ही किया। भृगृ ने देखा कि भगवान शिव और पार्वती के बीच से निकलने की पर्याप्त जगह नहीं है, तो भृगु ने एक चूहे का रूप धारण किया और शिव की परिक्रमा करने लगे।
यह देखकर शिव ने देवी पार्वती को अपनी गोद में बैठा लिया, जिससे कि भृगृ को देवी पार्वती की परिक्रमा करनी ही पड़े, लेकिन भृगृ ने बड़ी चतुरता के साथ एक पक्षी का रूप धर लिया और उड़कर शिव के मस्तिष्क के चारों और घूमकर परिक्रमा करने लगे। यह देखकर पार्वती को बहुत क्रोध आ गया। भगवान शिव को पार्वती के प्रति भृगृ का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। भगवान शिव ने आखिरकार देवी पार्वती को स्वंय में समाहित कर लिया और अर्धनारीश्वर बन गए। भृगु ने फिर एक मधुमक्खी का रूप लेकर शिव की दाहिनी टांग का चक्कर लगा दिया। भगवान शिव सिद्धासन में बैठ गए। अब ऐसे में भृगृ के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा। अब उन्हें शिव के दोनों योग यानी स्त्री और पुरुष की परिक्रमा करनी पड़ी। इस कहानी से भगवान शिव ने पूरे संसार को यह संदेश दिया कि योग का अर्थ सभी आयामों के समावेश से है। शरीर के साथ आपको अपने मन और भावनाओं को भी शुद्ध करना पड़ेगा, तभी आप योग का लाभ पूरी तरह से ले पाएंगे। भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप धारण करके भृगृ सहित संपूर्ण मानव जाति को संसार का सही अर्थ समझा दिया।